Sunday 2 March 2008

बुलावा आ रहा है इसराइल से

डॉ नवरस आफरीदी इज्राएली संसद के सामने राष्ट्रीय चिन्ह मनोराह के सामने येरूशलम, इसराइल में


 

योगेश मिश्र, आउटलुक साप्ताहिक, १० नवम्बर २००३

याद दिलाई जा रही है सदियों पहले के पुरखों की

अपने पुराने, बहुत पुराने बाशिंदों को वापस घर बुलाने की एक नई पहल शुरू की गई है. दुनिया भर में बिखरे इसराइल के इन मूल निवासियों में उर्दू के अजीम शायर पद्मभूषण जोश मलीहाबादी , १९३९ में विम्बिल्दों टेनिस टूर्नामेंट के कौर्टर फिनल तक पहुचने वाले पद्म श्री घुस मुहम्मद खान, आम के एक पेड़ में ३१५ प्रजातियाँ उगाने का कीर्तिमान स्थापित कर चुके हाजी कलीमुल्लाह खान और कभी बघ्बानी में खासा नाम कम चुके अब्दुल बारी खान के नाम अकेले उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद से शामिल हैं. इसराइल में घर वापसी कानून लागू होने के बाद वहाँ के कई गैर-सरकारी संगठनों ने मलिहाबाद इलाके में रह रहे आफरीदी पठानों के वंशजों को विधिवत निमंत्रण पत्र भेजा है.

इन आफरीदी पठानों की इस्रेली पृष्ठभूमि की प्रमाणिकता जांचने-परखने के लिए लोंदों विश्व विद्यालय में यहूदी इतिहास के प्रोफेस्सर ९द्र० तुदोर पार्फित तथा रूस की भाषाविद और हिन्दी-उर्दू के अलावा कई एशियाई और एउरोपिये भाषाओं की ज्ञाता युलिया एगोरोव ने पिच्च्ले साल १४ नवम्बर को यहाँ का दौरा किया. इस दौरान इन लोगों ने डी.न.अ. जांच के लिए पचास विभिन आफरीदी परिवारों के पुरषों के नमूने लिए. डॉ पर्फित की ख्याति अफ्रीका के लुप्त कबीले लम्बा और यमन के प्राचीन नगर सेना को ढूँढ निकालने वाले के रूप में भी है. उनका मानना है की लाख नौ के समीप स्थित मलिहाबाद और फरुखाबाद के कायमगंज इलाके में रह रहे अल्प संख्यक समुदाये के लोग वस्तुतः इस्रेली मूल के यहूदी हैं. पर्फित ने जेनेटिक शोधों के ज़रिये दावा किया है की वास्तव में मराठी यहूदी हजरत मूसा के भाई एरों के वंशज हैं.

उर्दू शायर जोश मलीहाबादी के खानदान के नवरस आफरीदी ल ख नौ विश्व विद्यालय के मध्य युगीन और आधुनिक इतिहास विभाग से "भार्तिये यहूदी तथा भारत में इसराइल के लुप्त कबीले" विषये पर शोध कर रहे हैं. नवरस ने आउटलुक साप्ताहिक से कहा, "अपने पुरखों के बारे में जानने की तमन्ना के चलते हमने शोध के लिए यह विषय चुना." इसराइल के लुप्त कबीले और यहूदियों को खोजने और इन्हें अपनी पूर्व भूमि लौटने का आमंत्रण देने वाली इस्रेली संस्था आमिशाव ने नवरस और मलिहाबाद के कई लोगों को "वे जहाँ हैं, जिस स्थिति में हैं" उस से एक सीर्ही ऊपर अपने समाज में स्थापित करने का भरोसा दिलाते हुए घर वापसी का पैघाम भेजा है. १८ मार्च २००० को पेहली बार भेजे गए ख़त में कहा गया है की आफरीदी पठानों का मूल निवास स्थान अफ्घन-पक सीमा का पश्चिमी पर्वतिये इलाका है. पठानों का आफरीदी कबीला वास्तव में इफ्राइम है. इसराइल का एक लुप्त कबीला जिसे ७२२ ईसा पूर्व में असीरियाई आक्रमण के कारण इसराइल छोड़ना पड़ा और जो समय के साथ खो गया. कुछ आफरीदी पठान १७६१ ईसवी में पानीपत के तीसरे युद्ध में विजयी होने के बाद मलिहाबाद अ बसे. दो पन्ने के इस ख़त में इसराइल के दूसरे राष्ट्रपति और इतिहासकार यिजाक बेन जावी की एक दर्जन से अधिक पुस्तकों के दृष्टांत भी दिए गए हैं. इसमें यिजाक बेन ज्वी की पुस्तक डी एक्जैल्ड एंड डी रिदीम्द के पृष्ठ २०९ से २१९ तक का हवाला देते हुए बताया गया है की आफरीदी पठानों का मूल निवास इसराइल है और ये वास्तव में 'इफ्राइम' है.

इसके अलावा इसी काम में जुटी हुई एक अन्य संस्था 'बेत जूर' ने भी ७ जनवरी २००१ को घर वापसी की एक भावनात्मक अपील यहाँ के लोगों को घेजी है. इसराइल जा बसने की तमन्ना संजोये नवरस से इस्रेली संस्थाओं की काटो-किताबत जारी है. नवरस बताते हैं, "मैं जाना चाहता हो. मेरी प्रबल इच्छा है. अपनी जड़ों तक पहुँचने की तमन्ना किसे नहीं होती? और फिट मैं टू इतिहास का छात्र हूँ. लेकिन उनकी माँ इसके लिए बिल्कुल तय्यार नहीं हैं. वह चाहती हैं की उनका बेटा भारत में रहे. परन्तु दिलचस्प यह है की अपने बेटे को इसराइल ना भेजने के पीछे उनका तर्क है, "वहाँ बहुत असुरक्षा है." उधर शायर कवि कमल खान के नाती ने कहा, "अगर हमारा यहूदी साम्बअंध सिद्ध भी हो, टैब भी हममें इसराइल का ऐश्वर्या मंज़ूर नहीं." परन्तु लाख नौ विश्व विद्याला में पढ़ रही रौशनी मरियम कहती हैं, "सुनकर खुशी टू होती है की हमारे पूर्वज वहाँ से आए हैं. हमें वह स्थान देखकर प्रसन्नता ज़रूर होगी.



2 comments:

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