मलीहाबाद को इसराइल से जोड़ता है एफ्राइम कबीला
अपराजीता श्रीवासतव, सिटी, हिंदुस्तान, लखनऊ, २४ अप्रैल, २००६
अगर कोई एक दम से पूछ बैठे की लखनऊ और इसराइल में कोई नाता है या नहीं. टू हम में से ज्यादातर लोगों का जवाब होगा 'नहीं'. थोडा रुकिए नाता टू है. इसराइल के लुप्त्प्राये कबीले 'एफ्राइम' की खासी आबादी आज अपने मलिहाबाद में है. इस हैरातान्गेज़ राज़ को खोला है अपने शहर के एक युवक ने. उस युवा ने इस विषय पर गहन शोध किया है. नवरस आफरीदी का शोध अपराजिता श्रीवास्तव की कलम से।
मलीहाबाद में, अपनी दीलेरी और जानबाजी के लिए मशहूर , आफरीदी पठानों की छोटी सी आबादी रहती है । आफरीदी पठान मूल रूप से अफ्घान-पाक सीमा के पर्वतिये इलाके के रहने वाले हैं । १७६१ के कुछ दशक पहले आफरीदी पठान यहाँ आ बसे । आज हालत यह हैं की यह अपनी बुनियाद, अपनी जड़ों से बेखबर हैं । यह लोग ख़ुद भी नहीं जानते की वे दुनिया के किस कोने से तालुक रखते हैं। अपनी जड़ों से हजारों किलोमीटर दूर बसे इन लोगों का इतिहास खोजा है नवरस आफरीदी ने । नवरस लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं । नवरस आफरीदी के रीसर्च में निकल कर सामने आया है की यह आफरीदी पठान वास्तव में में इसराइल का लुप्त कबीला इफ्राइम है।
नवरस के शोध 'भार्तिये यहूदी तथा भारत में इसराइल के लुप्त कबीले' में यह तथ्य उजागर हुए की ७२१ ईसा पूर्व में असीरियाई हमले के कारन इफ्राइम सहित दस कबीलों को इसराइल छोड़ना पडा। इसके बाद यह कबीले , यहाँ के लोग कहाँ गए किसी को कुछ नहीं मालूम था । इस शोध में यह बात सामने आयी की असीरियाई हमले के बाद इस कबीले के कुछ लोग अफ्घान-पाक सीमा के पर्वतिये इलाके में आ बसे । दस्तावेज़ इस और इशारा करते हैं की मलीहाबाद में पठान टैब से रह रहे हैं जब सं १२०२ के आस-पास मुहम्मद बख्तियार खल्जी के नाम पर बख्तियार्नगर गाँव बसा था । वैसे अधिकतर पठान आबादी १७वीं शताब्दी के दौरान यहाँ आए। सं १७४८ से १७६१ के बीच अहमद शाह अब्दाली की हमलों के दौरान आफरीदी पठान सैनीक भारत आए और यहाँ के होकर रह गए । जब वे भारत के घैर-पठान मुसलमान इलाकों में आकर बसे टू उन्होनें यही उचित समझा की अपने इजराइली अतीत का उल्लेख ना करें / परिणाम स्वरूप उनकी आगामी नस्लें अपनी इज्राएली उत्पत्ति से अनजान की रह गयी ।
अपने शोध को पुख्ता करने के लिए नवरस ने ५० अलग-अलग आफरीदी पठान परिवारों के पुरषों के ड़ी एन ऐ इकखट्टे कीए । इन पर लंदन के एक अनुसंधान केन्द्र में विश्लीशन हो रहा है। आफरीदी पठानओं के इज्राएली सम्भंद को ड़ी एन ऐ की सहायता से सामने लाने के लिए नवरस ने लंदन विश्व विद्यालय के यहूदी इतिहास के प्रोफेसर टुदोर पार्फीट तथा रूस की भाषा विद व इतिहासकार डॉ युलिया एगोरोव के साथ एक अन्तर राष्ट्रीय शोध दल का गठन कीया ।
आफरीदी पठानों के इज्राएली जुडाव को सामने लाने वाले डॉ नवरस आफरीदी ख़ुद आफरीदी पठान हैं। नवरस बताते हैं, "जब में १२ साल का था टैब मेरे ताऊ ने मुझे बताया था की बहुत सम्भव है की हम इज्राएली मूल के आफरीदी पठान हैं । बस तभी मैंने यह फैसला कर लिया था की अपनी जड़ों का पता ज़रूर लगाऊँगा । नवम्बर २००२ में मध्य कालीन व आधुनिक भार्तिये इतिहास वीभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर वी ड़ी पांडे के नीरदेशन में अपना शोध शुरू किया। इसे पूरा होने में तीन साल लग गए । २००५ में में नवरस को पी एच ड़ी की उपाधी प्रदान की गयी । उत्तर प्रदेश में आफरीदी पठान मुख्य रूप से मलीहाबाद और फर्रुखाबाद जीले की कायमगंज तहसील में रहते हैं । इसके अलावा रामपुर, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, बदायूं और हरदोई जीले में शाहाबाद में भी इनकी कुछ आबादी रहती है।
नवरस से पहले इस शोध में उनके सहयोगी प्रोफेसर पारफीट मुम्बई, पूने, थाने, और अहमदाबाद में रह रहे ४,००० बेनी इसराइल का सम्भंद यहूदियों से साबीत कर चुके हैं । डॉ पारफीट का नाम अफ्रीका के लुप्त कबीले लिम्बा और यमन के प्राचीन नगर 'सेना' को खोजने के लिए भी लिया जाता है । पारफीट ने जेनेटिक शोधों के ज़रिये दवा किया है की वास्तव में मराठी यहूदी हजरत मूसा के भाई ऐरन के वंशज हैं । दुनिया भर में छोटी-छोटी आबादी में रह रहे यहूदियों को खोज नीकआलने का काम आज से क़रीब १२-१३ साल पहले शुरू हो चुका है । १९९३ में येरुशलम रिपोर्ट में एक लेख प्रकाशित हुआ जिस में पठानों की इज्राएली सम्भंद में गहन अध्यन था। इसके अलावा २००२ में अमेरीकी फ़िल्म निर्माता सिम्खा याकोवित्सी को पठानों की इज्राएली उत्पत्ती पर बने वृत्त चित्र लिए एमी पुरस्कार प्रदान किया गया । इसके अलावा स्कूल ऑफ ओरिएण्टल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ , लंदों में आफरीदी पठानों का इज्राएली सम्भंद स्थापीत करने के लिए शोध चल रहा है। येरुशलम में बेन-ज्वी अनुसंधान से प्राप्त इसराइल के दूसरे राष्ट्रपती और विश्वविख्यात इतिहासकार यिजाक बेन-ज्वी की वर्ष १९५७ की प्रकाशित पुस्तक 'द एक्जैलेद एंड दा रीडीम्द' में ऐसी एक दर्जन से अधीक यहूदी परम्पराओं और रस्मों के बारे में ज़िक्र किया है जो आफरीदी पठानों में में प्रचलित हैं।
इसराइल में दुनिया भर में बसे यहूदियों को अपने वतन, अपने लोगों के बीच वापस बुलाने के लिए घर वापसी का कानून बनाया है। इसके बाद वहाँ के कई घैर-सरकारी संगठनों ने मलीहाबाद सहित भारत के अन्य इलाकों में रह रहे आफरीदी पठानों के वंशजों को निमंत्रण पत्र भेजा है
इसराइल के लुप्त कबीलों और यहूदियों को खोजने व उन्हें अपने पूर्वजों की भूमि लौटाने का आमंत्रण देने वाली इज्राएली संस्था आमीशाव ने मलीहाबाद के कई लोगों को उनकी वर्तमान स्थीती से एक पायेदान ऊपर अपने समाज में स्थापित करने का भरोसा दिलाते हुए 'घर-वापसी' का संदेश भेजा है।
तेल अवीव युनीव्र्सीती ने डॉ आफरीदी को आमंत्रित कीया है इज्रईली मूल के मुसलमानों पर पोस्ट-डोक्तोरल रीसर्च के लिये। भारत के मानव वीकआस मंत्रालय ने स्कोलार्शीप के लिए मनोनीत कीया है।
भाग १
भाग २
भाग ३
भाग ४
भाग ५
भाग ६
भाग ७
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